मोक्ष दिलाने वाली कथा है श्रीमद्भागवत : पं० रमाकांत शर्मा

मोक्ष दिलाने वाली कथा है श्रीमद्भागवत : पं० रमाकांत शर्मा 
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट 

जांजगीर चांपा – श्रीमद्भागवत कथा को अमर कथा माना गया है , यह कथा हमें मुक्ति का मार्ग दिखलाती हैं। जो जीव श्रद्धा और विश्वास के साथ मात्र एक बार इस कथा को श्रवण कर लेता है उनका जीवन सुखमय हो जाता है। वह सदैव के लिये मोक्ष की प्राप्ति कर लेता है और उसे सांसारिक बंधनों के चक्कर मे आना नही पड़ता। इस कलिकाल में मोक्ष दिलाने वाला श्रीमद्भागवत महापुराण कथा से कोई अन्य श्रेष्ठ मार्ग नही है। इसलिये ईश्वर भक्ति का मार्ग अपनाकर मनुष्य को मोक्ष के मार्ग पर चलना चाहिये। जीवन में एक बार संकल्पित श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण मनुष्य को करना चाहिये।
                            उक्त बातें मां शंवरीन दाई की पावन धरा अमोरा (महन्त) में श्रीरामचरितमानस के मूर्धन्य विद्वान दिलीप तिवारी की स्मृति एवं श्रीमति वैदेही तिवारी के वार्षिक श्राद्ध पर आयोजित संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिवस भागवताचार्य  पं० रमाकांत शर्मा (गौद वाले) महाराज ने मुख्य यजमान श्रीमति आरती सत्येन्द्र तिवारी सहित भक्तों को कथा का रसपान कराते हुये कही। महाराजश्री ने बताया कि परीक्षित को ऋषि पुत्र द्वारा सातवें दिन मरने का श्राप दिया गया था। उन्होंने अन्य उपाय के बजाय श्रीमद्भागवत की कथा का श्रवण किया और मोक्ष को प्राप्त कर भगवान के बैकुण्ठ धाम को चले गये‌। ऐसे श्रीमद्भागवत कथा श्रवण करने का सौभाग्य केवल श्रीकृष्ण की असीम कृपा से ही प्राप्त हो सकती है। कथा सुनाने के बाद श्रीशुकदेवजी ने राजा परिक्षित को पूछा राजन् मरने से डर लग रहा हैं क्या ? तब राजा ने कहा महाराज मृत्यु तो केवल शरीर की होती हैं आत्मा तो अमर होती हैं , भागवत कथा सुनने के बाद अब मेरा मृत्यु से कोई डर नही हैं औऱ अब मैं भगवत्प्राप्ति करना चाहता हूँ। मुझे कथा श्रवण कराने वाले सुकदेवजी आपकों कोटि-कोटि मेरा प्रणाम कहकर परिक्षित ने श्रीशुकदेव जी को विदा किया। इसके बाद ऋंगी ऋषि के श्राप को पूरा करने के लिये तक्षक नामक सांप भेष बदलकर राजा परिक्षित के पास पहुंँचकर उन्हें डस लेते हैं। परीक्षित की आत्मा तो पहले ही श्रीकृष्ण की चरणारविन्द में समा चुकी थी और कथा के प्रभाव से अंत में उन्हें मोक्ष प्राप्त हो गया। परीक्षित को जब मोक्ष हुआ तो ब्रह्माजी ने अपने लोक में तराजू के एक पलडे़ में सारे धर्म और दूसरे में श्रीमद्भागवत को रखा तो भागवत का ही पलड़ा भारी रहा। अर्थात श्रीमद्भागवत ही सारे वेद पुराण शास्त्रों का मुकुट है। पिता की मृत्यु को देखकर राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय क्रोधित होकर सर्प नष्ट हेतु आहुतियांँ यज्ञ में डलवाना शुरू कर देते हैं जिनके प्रभाव से संसार के सभी सर्प यज्ञ कुंडों में भस्म होना शुरू हो जाते हैं तब देवता सहित सभी ऋषि मुनि राजा जनमेजय को समझाते हैं और उन्हें ऐसा करने से रोकते हैं। आचार्यश्री ने कहा कि कथा के श्रवण प्रवचन करने से जन्मजन्मांतरों के पापों का नाश होता है और विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। कथा व्यास ने प्रवचन करते हुये कहा कि संसार में मनुष्य को सदा अच्छे कर्म करना चाहिये तभी उसका कल्याण संभव है। श्रेष्ठ कर्म से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है। आचार्यश्री ने बताया कि संसार सागर में भक्ति एक नौका की तरह है , भक्ति के बिना मनुष्य जीवन पटरी पर नहीं चल सकता है। इस कलयुग में भी मनुष्य श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण कर अपना कल्याण कर सकता हैं। इस कलिकाल में भी वह भगवान के नाम स्मरण मात्र से भगवत् शरणागति की प्राप्त कर अपने जीवन को धन्य बना सकता है। कथा के अंतिम दिन श्रोताओं की खूब भीड़ रही , वहीं इस दिन कथाश्रवण करने छत्तीसगढ़ विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल भी पहुंचे हुये थे। व्यासपीठ से आचार्यश्री ने श्रीफल और हरिनाम दुपट्टा सौंपकर उनको आशीर्वाद दिया। श्रीमद्भागवत कथा का विश्राम राज परीक्षित के मोक्ष प्रसंग के साथ हुआ , इस दौरान सभी हरिभक्तों ने कथा श्रवण कर चढ़ोत्री में भाग लिया।