बिंझवार समाज की कुल देवी विंध्यवासिनी की दरबार में जलते हैं आस्था और विश्वास के दीप ...

लक्ष्मी नारायण लहरे 
सारंगढ़ । सारंगढ़ बिलाईगढ नव सृजित जिला के सुदूर अंचल के गांव गांव में इतिहास के पन्ने दबे हुए हैं उन इतिहास के पन्नों को नए सिरे से सहेजने की जरूरत है ।सारंगढ़ जिला अनुसूचित  बाहुल्य जिला के साथ साथ सुदूर अंचल के गांवों में अनुसूचित जन जाति के लोगों की उपस्थिति है । गोमर्डा अभ्यारण के क्षेत्र में कई ऐसे समुदाय के लोग निवासरत हैं जो जंगल पर अभी भी निर्भर है ।उनकी खान पान रहन सहन शहर कस्बे से भिन्न नजर आती है उनकी एकता समाज के नीतियों से बंधी होती है । 
भारतीय संस्कृति में आदि काल से ही देवी देवताओं की हर समाज में एक अलग महत्त्व रहा है भारत ऋषि मुनियों और महापुरुषों के जीवन गाथा से भरी पड़ी है । 
सारंगढ़ जिला मुख्यालय से महज 16 किलो मीटर दूर सारंगढ़ सरायपाली मुख्य मार्ग पर ग्राम 
कनकबीरा स्थित है। जहां बिंझवार समाज की कुल देवी विंध्यवासिनी देवी की मंदिर बिंझवार समाज द्वारा स्थापित किया गया है ।विंध्यवासिनी पुत्र बिंझवार समाज का आस्था का प्रतिक है । यह समाज अपने कुल देवी के प्रति समर्पित हैं और समाज की गतिविधियों से इस मंदिर से संकल्पित हैं ।
विंध्यवासिनी की इतिहास : विंध्यवासिनी देवी 
 की इतिहास के बारे में बिंझवार समाज के वरिष्ठ जन शिक्षाविद श्री राम लाल बरिहा का कहना है मंदिर जिस जगह में बनी है उस जगह में पहले जंगल था  हमारे पूर्वज यहां आते थे और पत्थरों के बीच दीप जलाकर पूजा अर्चना करते थे हमारे पूर्वजों का मानना है की विंध्यवासिनी देवी हमारे बिंझवार समाज की कुछ देवी है । पूर्व प्राचार्य और मंदिर के संस्थापक राम लाल बरिहा के छोटे पुत्र आनंद बरिहा ने बताया की पिता जी जब सेवा निवृत हुए तो इस रास्ते से हम लोग अक्सर आते जाते थे तो हमारे बिंझवार समाज के लोग यहां पूजा पाठ करते नजर आते थे तब उनके इस  पूजा पाठ से प्रेरित होकर समाज को एक सूत्र में बांधने के लिए इस  जगह पर मंदिर बनाने की विचार आई और समाज के लोग सहमति दिए की अपने कुल देवी की मंदिर बनाया जाय तब समाज इक्कठा हुआ और विंध्यवासिनी देवी की मंदिर की नीव रखी गई।
 विंध्यवासिनी देवी मंदिर की इतिहास : इस मंदिर की निर्माण 2017 में प्रारंभ हुई जो अथक प्रयास से 8 माह 18 दिन में बनकर तैयार हुआ । जिसका विधिवत बिंझवार समाज ने 2018 में विंध्यवासिनी देवी की प्राण प्रतिष्ठा किए । इस मंदिर को  बनाने श्री रामलाल बरिहा (सालार) ने अपने समाज को जोड़ने के लिए उनकी जनजाति पर विंध्यवासिनी पुत्र बिंझवार नामक एक पुस्तक भी लिखे और अपने समाज को एक सूत्र में जोड़े आज राम लाल बरिहा लकवा के शिकार हैं फिर भी वे समाज के लिए निरंतर काम कर रहे हैं । शिक्षक लक्ष्मण बरिहा ने इस मंदिर के विषय में बताते हुए बोले की यह हमारी कुल देवी की मंदिर है हमारे समाज को एकता के सूत्र में जोड़कर रखा है हमारी समाज अपनी संस्कृति को रहन सहन को बचाए रखने की प्रेरणा देती है। हमारा समाज धार्मिक सोंच का है । स्थानीय पत्रकार रामकुमार थुरिया ने बिंझवार समाज के बारे में बताया की बिंझवार समाज प्रकृति के पूजक है विंध्यवासिनी देवी जंगल की देवी है और देवी पर आस्था जुड़ी है । शिक्षिका श्रीमती पुष्पा आनंद बरिहा मंदिर की देवी की इतिहास पर बताते हुए कहती है की विंध्यवासिनी देवी दुवापर युग की देवी है यह हमारे अराध्य और कुल देवी हैं। 
सारंगढ़ से महज 16 किलो मीटर की दूरी पर यह मंदिर बना है यहां हर वर्ष  चैत और कुंवार नवरात्रि पर आस्था और विश्वास के दीप जलाए जाते हैं पूरे 09 दिन तक समाज के द्वारा भंडारे का आयोजन होता है । इस वर्ष 15 अक्टूबर से नवरात्रि पर्व प्रारंभ हो रही है जिसकी तैयारी में समाज जुट गई है । 
पर्यटन की संभावनाएं : 
कनकबीरा सारंगढ़ से कुछ दूरी में सुदूर अंचल है जहां पर्यटन की अपार संभावनाएं है वही यह मंदिर राष्ट्रीय राज मार्ग से लगा है इस मंदिर से लोगों की आस्थाएं जुड़ी हुई है ।
लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल"
साहित्यकार पत्रकार 
कोसीर सारंगढ़